
खुशियों की दिवाली मुरादों की ईद बन कर आये,
इससे ज्यादा और क्या शुभकामनायें दूँ 'आकुल'
इक दोस्त तेरे घर फ़रिश्ता जदीद बन कर आये।
मिश्र ने उक्त प्रवास में साहित्यिक, सांस्कृतिक और रंगकर्म से सम्बंधित उक्त प्रख्यात हस्ताक्षरों से मुलाकात को अविस्मरणीय बताया। उनके साथ हुई सार्थक-यादगार चर्चा से मिले अमूल्य अनुभवों को बताया। राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक-सांस्कृतिक संदर्भों में अपेक्षित प्रयासों के अभाव में संभाव्य रिक्तता और क्षरण पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री शर्मा और श्री वत्सल के मूल्य आधारित संगीत, साहित्य और रंगकर्म के राष्ट्रीय स्तर पर सार्थक और प्रभावी बनाकर उसे सामाजिक रूपांतरण की दिशा में प्रेरणात्मक-अनुकरणीय बनाने व देशभर के शब्द शिल्पियों, कलाकारों के बीच एकता व प्रेरक संवाद कायम करने व अपने महान् दायित्व निर्वहन में जुटने-जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के अथक प्रयासों और अप्टा की गतिविधियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। ज्ञातव्य है कि इप्टा की दयनीय दशा के चलते उसकी तर्ज पर अप्टा उत्तर प्रदेश में अपनी एक जगह बना रहा है। जलेस प्रकाशन कोटा से अब तक प्रकाशित सभी 13 काव्य संग्रहों के प्रकाशनों की महत्ता पर महानुभावों व उनके कतिपय साथियों के साथ चर्चा करते हुए स्वयं के हिन्दी-उर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’, हाड़ौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं के संग्रह ‘जन जन नाद’,और प्रख्यात जनकवि, साहित्यकार, संगीतकार और क्रॉसवर्ड मेकर श्री गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ के काव्य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ साहित्य उन्होंने उन्हें भेंट किया, जिसे पा कर वे अभिभूत हो गये। उक्त पुस्तकों में व्यक्त सार्थक कथ्य अनुकरणीय सुंदर और आकर्षक कलेवर में उनका प्रकाशन और समाज को बेहतर बनाने की रचनाकारों की प्रेरक भावनाओं की प्रशंसा करते हुए श्री शर्मा व श्री वत्सल ने मिश्र, आकुल और सदस्य साथियों के प्रयासों के लिए श्री मिश्र को बधाई दी। भेंट दी गयी पुस्तकों को पढ़ कर जनवाद की अमूल्य धरोहर पुस्तकों पर वे अपनी सार्थक समीक्षा भी श्री मिश्र को भेजेंगे, उन्होंने आश्वासन दिया। मिश्र ने वहाँ चर्चा करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक वर्चस्व के शिकंजे को विफल करने के लिए सांस्कृतिक प्रतिरोध के सभी प्रयासों में कोटा जलेस व अन्य संस्थाओं, व्यक्ति समूह के साथ कंधे से कंधा मिला कर सहयात्री-सहकर्मी की भूमिका में प्रभावी तरीके से साथ होने की अपनी अथक यात्रा के बारे में उन्हें बताया। इस यात्रा के अविस्मरणीय क्षणों, जन नाट्य मंच की उनकी रंगकर्म यात्रा, जलेस की स्थापना, कोटा जलेस, कोटा जलेस द्वारा दिये जा रहे ठाड़ा राही सम्मान, कोटा जलेस से जुड़े साहित्यकारों, कवियों, रचनाकारों के बारे में बताते हुए सन् 2008 में सृजन वर्ष मनाये जाने और 9 पुस्तकों के प्रकाशनों के ऐतिहासिक प्रयासों की भी उन्होंने चर्चा की। वर्तमान में आकुल व चक्रवर्ती के बहु आयामी व्यक्तित्व के बारे में भी उन्होंने श्री शर्मा व श्री वत्सल को बताया। कोटा में साहित्यिक गतिविधियों पर भी प्रकाश डालते हुए उन्होंने राजस्थान के हाड़ौती अंचल में चम्बल की अजस्र धारा के साथ-साथ साहित्य की बहती अविरल धारा के बारे में भी जानकारी दी। अखिल भारतीय स्तर के कवियों, साहित्यकारों, रचनाकारों की भूमि कोटा के बारे में भी उन्होंने विस्तार से उनसे चर्चा की और विशेष अभियानों में उन्हें कोटा आने का विशेष आग्रह करने व आमंत्रित करने का दृढ़ आश्वासन भी दिया। अंत में मिश्र ने दिल्ली-कोटा जन नाट्यमंच द्वारा स्थापना से लगायत अब तक की गाँव-गाँव, शहर-शहर, ढाणी-ढाणी में अपने राष्ट्र, समाज हित में जन जागरण के लिए अपनी अनेकों नाट्य प्रस्तुतियों से असंख्य दर्शकों पर सार्थक प्रभाव की चर्चा करते हुए बताया कि कोटा में वे जन नाट्य मंच के संस्थापक रहे हैं और मजदूर आंदोलनों से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। आज भी वे अधिवक्ता होने के नाते उनके हितों के लिए सहयोग देने में पीछे नहीं हैं। पिछले दिनों पूरे एक माह तक सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट दिल्ली द्वारा अमेरिका में सैंकड़ों नाट्य मंचनों की चर्चा की तो माहौल उत्साह से भर गया । अप्टा के पदाधिकारियों के मध्य वे जनवाद के हुतात्मा सफ़दर हाशमी के बारे में बताने से नहीं चूके। अप्टा के पदाधिकारियों ने सफ़दर हाशमी की 1989 में उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद में नुक्कड़ नाटक के मंचन के दौरान शहादत को भी श्रद्धा से याद किया। मिश्र ने कोटा व राजस्थान के अमन पसंद कलमकारों-कलाकारों की ओर से श्रेष्ठ प्रयासों में सभी सम्भव-सार्थक सहयोग का आश्वासन दिया और शीघ्र ही एकजुट प्रभावी अभियानों की शुरुआत की अपील की। अप्टा के सभी उपस्थित सदस्यों ने हाड़ौती के रचनाकारों और जलेस परिवार को साधुवाद दिया और आगे ऐसे ही नये राष्ट्र हित, समाज हित, जन जन के लिए किये जाने वाले कार्यों, अभियानों व प्रकाशनों में बढ़-चढ़ कर सहयोग देने का आश्वासन दिया। मिश्र ने भी सेना के लिए अथक परिश्रम के साथ-साथ जनहित में लगे अप्टा के अधिकारियों को साधुवाद दिया और अपनी इस यात्रा को एक मायनों में ऐतिहासिक बताया। स्व0 मिथलेश रामेश्वर प्रतिभा सम्मान से सम्मानित हुए इसी दौरान मेरठ में उन्हें दिल्ली के ‘हम सब साथ साथ’ पत्रिका के श्री किशोर श्रीवास्ताव से स्व0 मिथलेश रामेश्वर प्रतिभा सम्मान के लिए चुने जाने का शुभ समाचार मिला। दस दिवसीय अपनी महत्वपूर्ण इस साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्रा के साथ-साथ प्रतिभा सम्मान के लिए चुने जाने के अविस्मरणीय क्षणों को सहेज कर उर्जस्वी बन वे कोटा लौटे और जलेस पदाधिकारियों आकुल, चक्रवर्ती और डॉ0 नलिन को सम्मान के बारे में
और भारतीय धरा की संस्कृति से जुड़े रंगकर्मी और साहसी युवक युवतियों को प्रेरणा देने वाले इस कार्यक्रम की प्रशंसा की और भविष्य में इसे और भी सफलतायें मिलें, देश को कायस्थ समाज से ढेरों प्रतिभायें मिलें, जो राष्ट्र के विकास और उत्थान में अपना सहयोग दें, ऐसी शुभकामनायें दीं। जलेस के प्रकाशनों की प्रदर्शनी भी लगाई गई! लोगों ने सराहा। सहभोज के बाद श्री मिश्र ढेरों स्मृतियाँ सहेज कर कोटा लौटे। कोटा में जलेस सदस्यों ने उनका स्वागत कर बधाइयाँ दीं।
द्वारा प्रदान किया जायेगा। समारोह में अखिल भारतीय कायस्थ समाज के मेधावी छात्र-छात्राओं का भी अभिनंदन किया जायेगा।
कोटा। वेब की दुनिया में हिंदी की ई पत्रिकाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। हिदी गौरव, हिंद युग्म, काव्य पल्लवन, नवगीत की पाठशाला, अनुभूति, अभिव्यक्ति आदि अनेकों प्रख्यात हिंदी ई पत्रिका अपने विशेष भाषा संयोजन, विधा विशेष और प्रतियोगिताओं के माध्यम से हिंदी के साहित्यकारों, रचनाकारों, कवियों को उभरने का मौका देती है और रचनाकार का नाम वेब की दुनिया के माध्यम से करोड़ों लोगों तक पहुँचता हैं। इन ई पत्रिकाओं से हिंदी को विश्व पटल पर एक नई पहचान भी मिल रही है और हिंदी का प्रचार प्रसार भी द्रुतगति से हो रहा है। आज कल ब्लॉग बनाने की कला भी बहुत आसान होती जा रही है। आज जावा भाषा सीखने की आवश्यकता नहीं। अनेकों मुफ्त सेवायें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से आप अपनी सुरुचि का ब्लॉग बना सकते हैं
या बनवा सकते है और उस पर काम कर सकते हैं।
कोटा 6 नवम्बर। छोटे महाप्रभुजी मंदिर, रेतवाली, स्वरूप हाल बिराजमान 817 महावीर नगर द्वितीय में अन्नकूट सोल्लास सम्पन्न हुआ। अन्नकूट उत्सव के दर्शन प्रात: दस बजे से साढ़े ग्यारह बजे तक खोले गये। शहर में सभी पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के मंदिरों में अन्नकूट के दर्शन दोपहर 2 बजे से खुलने के कारण वैष्णवों व कृष्ण भक्तों को अन्नकूट का लाभ लेने के परिप्रेक्ष्य में छोटे महाप्रभुजी के अन्नकूट के दर्शन जल्दी खोलने का निर्णय लिया गया। प्रात: साढ़े नौ बजे श्रीगिरिराजजी का अभिषेक कर गोवर्धन पूजा की गयी और अन्नकूट भोग लगाया गया। भोग के दौरान परिवार ने अंतर्गृही परिक्रमा की। बाद में दस बजे दर्शन खोले गये। वैष्णवों ने इस अन्नकूट को मिनी छप्पन भोग के रूप में अन्नकूट के अवसर पर अन्नकूट की महिमा और बनायी गयी सामग्रियों के बारे में भी वैष्णवों को विस्तार से बताया गया। अन्नकूट की दो अवधारणायें प्रचलित हैं। श्रीकृष्णावतार में इंद्रदमन लीला के पश्चात् इंद्र के कोप से वर्षा से नष्ट हुए पूरे गोकुल से गोकुलवासियों को श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की तलहटी में आश्रय देने के बाद वृन्दावन ले जाकर अस्थायी रूप से स्थापित किया। बाद में गोकुल का पुनर्निर्माण कर उन्होंने गोकुलवासियों का गोकुल ला कर बसाया, जिसकी प्रसन्न्ता में पूरे ग्रामवासियों द्वारा सहभोज आयोजित किया गया, जिसे आज भी वैष्णव भक्त प्रकृति प्रेम और गोधन की रक्षा के प्रतीक के रूप में अन्नकूट उत्सव को मनाते हैं। दूसरी अवधारणा के रूप में गो0 बेटीजी ने बताया कि दीपावली उत्सव धन की देवी लक्ष्मी को आह्वान करते हुए लक्ष्मी पूजन के रूप में मनाया जाता है और दीवाली के दूसरे दिन धान्य के देव कुबेर के आह्वान के रूप में अन्नकोट सजा कर धान्य की पूजा के रूप में उन्हें प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट के रूप में मनाते हैं, ताकि नववर्ष में घर धन-धान्य से भरा रहे ।



कृति परिचय के लिए अपने उद्बोधन के लिए संचालक ने डॉ0 कंचना सक्सैना को आमंत्रित किया। डॉ0 कंचना सक्सैना ने अपने आलेख को नाम दिया ‘जीवन की गूँज’ जीवन से आप्लावित कृति। वे कृति के लिए हाशिया बाँधते हुए लिखती हैं कि लगता है आज सारे विशेषण नुच गये हैं, छिन गये हैं और रह गये हैं मात्र सर्वनाम, जो संज्ञा के क़रीबी दोस्त हैं। जब सर्वनाम ही रह गये हैं, तो ज़िन्दगी की दौड़ तेज हो जाती है। उस ज़िन्दगी की तरह, जो नामहीन हो गयी है। ऐसी ही ऊबड़-खाबड़, मधुर एवं तिक्त सम्बंधों की पहचान की है श्री भट्ट ने। इनको समझने के लिए एक ओर भीषण तपती आग की आवश्यकता है, तो दूसरी ओर शीतल मन्द फुहार की। आज कवि अपनी ज़िन्दगी और उससे जुड़ी स्थितियों के ग्राफ आदमी की भाषा में उतार रहा है, नक्श कर रहा है, उन समूचे पलों को, जिसमें आदमी मर-खप रहा है, जी कर मिट रहा है और मिटते हुए भी एक स्थान, एक जिजीविषा के लिए हाँफ रहा है। युगबोध की अभिव्यंजना के साथ विरोधी भावों को उद्वेलित करना कवि के लिए इसलिये भी सम्भव रहा है कि ज़िन्दगी की हर धड़कन अथवा नब्ज़ को उन्होंने पूरी तरह टटोला है। समकालीनता हमेशा जीवन सन्दर्भों से जुड़ने में होती है। जो कवि देशकाल निरपेक्ष सार्वभौम और शाश्वत सत्यों पर बल देते हैं, वे सदैव समकालीनता से परे होते हैं, चाहे वे आज के कवि हों या पहले के। पहले के कवि भी आज के सच से जुड़े हुए हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में बहुत सारी हाशिये पर पड़ी चीजें प्रमुख हो गयी हैं। इसमें हाशिये पर धकेले गये साधारण जन भी उभरकर आए हैं। श्री भट्ट ने अपनी सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से सभी विषयों को भावोर्मियों की लड़ियों में शब्दों के माध्यम से ऐसे पिरोया है कि पाठक मात्र आंदोलित हुए बिना नहीं रहता। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से आड़ोलित एवं आप्लावित आपकी चिन्तना निश्चय ही काल और समय की माँग के अनुकूल है। बाजारवाद एवं वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप उत्पन्न स्थिति में आम आदमी का संघर्ष, पीड़ा, घुटन, संत्रास के साथ रिसते हुए रिश्तों के प्रति कवि का सम्वेदनशील मन करुणाश्रु प्रवाहित करता है। 9 कालखंडों में रचित कविताओं को 240 पृष्ठीय पुस्तक में प्रश्रय मिला है। भावोद्गारों को ब्रज एवं राजस्थानी के रंग कलशों में न केवल उँडेला है, अपितु दर्शन और अध्यात्म को भी संस्पर्श किया है। कहीं शृंगार से प्रेरित, तो कहीं भक्ति से, कहीं बालहठ, तो कहीं प्राकृतिक सौंदर्य से आप्लावित। ब्रजभूमि का मोह संवरण लेखक नहीं कर पाये और स्थान स्थान पर उसे अपने काव्य में आश्रय प्रदान किया है। गृहस्वामिनी तथा जीवन के मोह ने शृंगारिक कविताओं को जन्म दिया है और मित्रों के सम्बल ने ‘सखा बत्तीसी’ का सृजन करवाया है। नयी कविता के पक्षधर होने पर उनकी कविता में वह ऊर्जा है, जो तुकान्त कविताओं में नहीं होती। यही कारण है कि जहाँ भाषा की दृष्टि से ‘आकुल’ प्रोढ़, परिष्कृत, परिमार्जित एवं परिनिष्ठित भाषा के धनी हैं, वहीं भाव की दृष्टि से भी कविता प्राणवान् और ऊर्जावान् बन पड़ी हैं। ब्रजभाषा पर तो आपका अपूर्व अधिकार है। कहीं-कहीं मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग में भाषा की अभिवृद्धि में चार चाँद लगाते हैं। उपमान जीवन से ग्रहीत हैं। कविता के साथ गद्य में कवि के विचार उसे समझने में सहायक तो हैं ही, साथ ही कवि का ये नवीन प्रयोग प्रशंसनीय है।
लेखक की विद्वत्ता का भी कहीं अंत नहीं है। जापानी विधा हाइकू में निबद्ध त्रिपदीय रचनाओं की परत दर परत सींवन उधेड़ी है। स्वध्येय में वे अनवरत सृजन की ओर संकेत भी करते हैं।
मुख्य अतथि श्री रघुराज सिंह हाड़ा ने अपने वक्तव्य में ‘आकुल’ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि सर्वप्रथम मैं पत्थरों के शहर के उनके एक शेर को सूक्ति के रूप में देखता हूँ ‘दोस्त फ़रिश्ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्ते होते हैं’ जिसे मैं पचासों मित्रों को सुना चुका हूँ। उन्होंने बताया कि जीवन की गूँज को मैंने आद्योपान्त पढ़ा है। जिस पुस्तक का आरंभ श्रीकृष्णार्पणम् से हुआ हो और समाप्ति श्रीकृष्णार्पणमस्तु करके बात पूरी हुई हो, तो भई श्रीकृष्णार्पणम् के बाद तो लोकार्पण, प्रसाद वितरण का ही होता है और वो भी हो गया। मेरे लिए यह सुखद बात मानता हूँ, जिस समय प्रिय आकुल का जन्म हुआ 18 जून 1955, उसके कुछ दिन बाद ही मैं शिक्षक बन गया था। दो तीन महीने पहले जन्मा बालक आज इतनी प्रोढ़ता के साथ एक कृति प्रस्तु्त करे और वह भी ऐसी, जो सारे जीवन को गूँजता हुए क्रमश:-क्रमश: चरेवेति-चरेवेति भाषा में कह जाता है। मुझे सबसे अच्छी बात इस कृति की यह लगी, वो यह कि सामान्यतया होता यह है कि मन किया और लिख दिया, पर प्रिय आकुल का संजीदगी भरा, धैर्य और उनकी प्रज्ञा का आग्रह रहा होगा कि उन्होंने कृति लिखने से पूर्व ‘क्या लिखूँ, क्यों लिखूँ’ के उत्तर तलाश किये, इसलिए हर रचना के पूर्व उन्होंने अपने उद्रगार प्रकट किये हैं। सामान्यतया ऐसा होता नहीं है, पर आकुल ने यह कर दिखाया, जो प्रशंसनीय है। यह सभी रचनाकारों के लिए सोचने की बात है। उन्होंने 'यदा यदा हि धर्मस्य' पर विवेचना की और आकुल को सुंदर कृति के लिए आशीर्वाद दिया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ0 औंकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि 19 वीं शताब्दी में झालावाड़ ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया था, हिन्दी सेवा में। हरिवंश राय बच्चन जहाँ गिरधर शर्मा कविरत्न से मधुशाला के छंद सीखने आये थे, जिस कविरत्न गिरधर शर्मा, शकुंतला रेणु, भट्ट गिरधारी शर्मा तैलंग कवि किंकर की कर्मभूमि झालवाड़ रही हो, पं0 गदाधर भट्ट का परिवार हो, ऐसे परिवार से संस्कारित हैं रत्नशिरोमणि “आकुल”। जीवन की जो गूँज है, एक सार्थक कवि की सार्थक प्रतिध्वनि है, जो दशकों तक लोगों द्वारा याद की जायेगी। मैंने पूरी पुस्तक को पढ़ा है। आज जन्माष्टमी है, चौंकिये मत, भले जन्माष्टमी आठ दिन बाद है। पर आज जन्माष्टमी है। हर रचनाकार की कृति का लोकार्पण जन्माष्टमी का त्योहार ही तो होता है। जो रचनाकार हैं, साहित्यकार हैं, जिसने अपने जीवन में पुस्तक लिखी हो, तन मन की सुध बिसरा जाता है। भाई आकुल ने कितने सपने सँजोये होंगे। अपनी आजीविका से पेट काट कर पैसे इकट्ठे कर के पुस्तक छपवाई होगी। एक संगीतकार का जीवन जीते जीते कवि बन जाना, अपने जीवन का इतना बड़ा मोड़ ले आना, फिर अपनी अंतर्भावानाओं से गुँथ जाना, फिर अपने आराध्य को ढूँढ़ना, फिर आराध्य के साथ अनुरंजित हो जाना, बहुत बड़ी साधना है। उन्होंने श्री भट्ट को सफल कृति के लिए शुभकामनायें दीं। उन्होंने आज वृद्धावस्था में बड़ी सक्रियता के लिए रघुनाथ मिश्र को भी बधाई दी।
प्रति समर्पित और उसके लिए प्रबल समर्थन ने ‘सखा बत्तीसी’ का निर्माण करवाया। संस्कार और पत्नी ‘श्री’ के महत्व ने जीवन को शृंगारित करने हेतु 'गीत गोविंद' को लोग भूले नहीं उसी तर्ज पर ‘शृंगार सजनी’ का सृजन किया है। उन्होंने इस पुस्तक को अपना स्वाध्याय बताया ओर कहा कि लोक संस्कृति और लोक साहित्य जीवंत रहे, यह कृति पाठकों को पसंद आयेगी। उन्होंने महाकाव्य महाभारत को प्रत्येक रचनाकार को पढ़कर आत्मसात् करने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम के अंत में अल्पाहार और लेखक की कृति का वितरण किया गया। जलेस सचिव, चर्चित होती त्रैमासिक पत्रिका दृष्टिकोण के प्रकाशक और फ्रेंड्स हेल्पलाइन के संरक्षक श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने पधारे सभी महानुभावों का आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झालावाड़ के राजस्थानी और हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और जलेस के ‘ठाड़ा राही’ पुरस्कार से सम्मानित श्री रघुराज सिंह हाड़ा होंगे, विशिष्ट अतिथि झालवाड़ के ही राजस्थान संस्कृत अकादमी के पूर्व निदेशक और राजस्थान के वरिष्ठ संस्कृत-हिंदी के साहित्यकार पं0 गदाधर भट्ट होंगे। समारोह की अध्यक्षता शहर के प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर औंकार नाथ चतुर्वेदी करेंगे। कृति परिचय राजकीय महाविद्यालय,कोटा की प्रवक्ता डॉ0कंचना सक्सैना देंगी तथा प्रमुख वक्ता होंगे आचार्य ब्रजमोहन मधुर और डॉ0 अशोक मेहता। कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात सम्प्रेरक और राष्ट्रीय प्रशिक्षक(केरियर गाइड) सौरभ मिश्र करेंगे। कृतिकार ‘आकुल’ की यह तीसरी पुस्तक है। आकुल की यह पुस्तक उनके विगत पचास साल में समय समय पर देश की दशा दिशा और साहित्यि के बदलते परिवेश पर उनके खट्ठे मीठे अनुभवों का संग्रह है। जीवन के विविध रंगों में रंगी उनकी पुस्तक उनके जीवन दर्शन को भी झंकृत करती है। जलेस शहर सचिव और कृतिकार आकुल ने बताया कि कार्यक्रम में पधारे सभी अतिथियों व साहित्यकारों को कार्यक्रम के समापन के पश्चात् पुस्तक भेंट स्वरूप दी जायेगी।

पत्रिका में लेख, ग़ज़ल, गीत, कविता, लघुकथा, दोहा, चतुष्पदी, मुक्तछंद, लघु कविता को स्थान दिया गया है। 52 पृष्ठीय पत्रिका में लगभग 60 रचनाकारों को स्थान मिला है। प्रदेश और देश के जाने माने साहित्यकारों से सुसज्जित यह पत्रिका सुंदर रंगीन कलेवर से सजी बहुत ही आकर्षक बन पड़ी है।
भौतिक सुख सुविधाओं की अंधी दौड़ में मनुष्य ने इस सुदर्शन कवच को इतना कृश कर दिया है कि पृथ्वी का जीवन खतरे में पड़ गया है। पौराणिक परिदृश्य पर भी दृष्टि डालें, तो हम पायेंगे कि हर युग में मनुष्य ने अपनी त्रुटियों से प्रकृति को बहुत कष्ट पहुँचाया है। भगवान् परशुराम-शिव युद्ध के भीषणतम चरम पर परशुराम द्वारा ब्रह्मास्त्र उठाने के असंयम ने राजस्थान के मरुस्थल को जन्म दिया और अंत:सलिला सरस्वती को लुप्त किया। इस भीषण घटना ने उस युग के प्रलय को सृजित किया था। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को संरक्षित करने के अतुलनीय सुदर्शन प्रयासों ने पुन: जीवन का संचार किया। त्रेता युग के रामायण काल में वरुणदेव द्वारा सागर से लंका का मार्ग प्रशस्त न करने के कारण उन्हें श्रीराम के कोप का भाजक बनना पड़ा और श्रीराम द्वारा ब्रह्मास्त्र धारण करने के कारण कच्छ के मरुस्थल का आविर्भाव हुआ। यह सब पर्यावरण के साथ मनुष्य के कृत्यों का एक पौराणिक पक्ष था।
कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन लगभग 50 प्रतिशत बढ़ने को अग्रसर है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों वातानुकूलक, फ्रिज, कम्यूटर, स्कूटर, कार आदि से है। कार्बन डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम ईंधन और परम्परागत चूल्हे हैं। पशुपालन से मीथेन गैस का उर्त्सजन होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड गैस तापमान बढ़ाती है। कोयला बिजलीघर भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत हैं। हालाँकि क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का प्रयोग भारत में बंद हो चुका है, फिर भी उसके स्थान पर प्रयोग में ली जा रही सबसे हानिकारक ग्रीन हाउस गैस हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड गैस से एक हजार गुना ज्यादा हानिकारक है। पूरे विश्व के औसत तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि मानव द्वारा उत्पादित गैसों के कारण ऐसा हो रहा है। हाल ही में नीदरलेण्ड की पर्यावरण सम्बंधी रिपोर्ट में चीन और भारत की ऊँची विकास दर को कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी के लिए दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी वजह से अमीर देशों ने उत्सर्जन में जो कटौती की है, वो निष्प्रभावी हो गयी है। कार्बन डाई ऑक्साइड, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है, कई बार प्रदूषण का कारण मानी जाती है, क्योंकि वातावरण में इन गैसों का बढ़ा हुआ स्तर पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। हाल ही के अध्ययनों से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर के बढ़ने के बारे में पता चला है, जिसके कारण समुद्री जल की अम्लता में मामूली सी बढ़ोतरी हुई है। यह एक जटिल स्थिति है और इसका संभावित प्रभाव समुद्री परितंत्र पर पड़ेगा। पृथ्वी पर उत्सर्जित 40 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड गैस पेड़ पौधों द्वारा सोख ली जाती है।
तकनीकी विश्वविद्यालय के नये भवन निर्माण के साथ-साथ यदि वृक्षारोपण को भी योजना में शामिल किया जाता, तो आज यह भवन वृक्षों से आच्छादित होने के भविष्य के सुनहरे स्वप्न देख रहा होता। परिसर चट्टानों से भरा हुआ है, सत्य है, किंतु यह मान कर तो अनदेखी नहीं की जा सकती है। ऐसा संस्थान जहाँ सबसे ज्यादा शोधकर्ता (पीएच-डी-धारक) शैक्षणिक स्टॉफ हो, वहाँ परिसर को हरा-भरा करने की ओर गम्भीरतापूर्वक प्रयास न हों, क्या यह प्रशासनिक और तकनीकी संस्थान के संदर्भ में एक प्रश्न चिह्न नहीं लगाता? चैलेंज और साहस से क्या नहीं किया जा सकता? इसके लिए आवश्यक है, एक बिन्दु कार्यक्रम। 30 वर्ष की लम्बी अवधि में इस परिसर के लिए पर्यावरणीय संरक्षण के प्रयासों के लिए सरकार को कितने प्रस्ताव भेजे गये, यह यदि प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा जाये, तो कदाचित् हम उन्हें मौन ही पायेंगे। सरकार सैंकड़ों योजनायें बनाती है, सहायता देती है, अनुदान देती है। हर असफल प्रयासों के लिए सरकार को दोष देना निरर्थक है। हमें स्वयं से प्रश्न करना होगा- क्या हम अब भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?
इस संयंत्र के कारण चम्बल का पानी हमेशा गर्म रहने लगा है और उसमें जल जीव या तो कम हो रहे है अथवा उनका पलायन निरंतर जारी है। चम्बल के किनारे-किनारे विश्वविद्यालय परिसर पट्टी पर गहन वृक्षारोपण करने की अत्यन्त आवश्यता है। वहाँ धीरे-धीरे कम होते जा रहे हरे-भरे वृक्ष भी चिन्ता का विषय है। उन्हें विकसित करना, अधिक वृक्ष लगाना व उन्हें संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है। 



लंबे समय से प्रतीक्षित गोपाल कृष्ण भट्ट "आकुल" की पुस्तक "जीवन की गूँज" काव्य संग्रह आखिरकार प्रकाशित हो ही गया।
240 पृष्ठीय इस पुस्तक में जीवन के उनके विगत 50 वर्षों की साहित्यिक रचना संसार की रचनायें प्रकाशित हैं। 9 खंडों में बनी इस पुस्तक में श्रीकृष्णर्पणम्, जीवन की गूँज, शृंगार सजनी, होली, सखा बत्तीसी प्रमुख खंड हैं। राजस्थान में और विशेषकर कोटा में विशेष लू और तीव्र गर्मी के क़हर के कारण अभी पुस्तक का लोकार्पण स्थगति रखा गया है। शीघ्र ही पुस्तक के लोकार्पण की तिथि घोषित की जायेगी।
कोटा। 2 मई 2010 को सायं 5 बजे कोटा के विज्ञाननगर में मयूखेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण की हरियाली और मनोरम वातावरण में छोटी बहर के ग़ज़लकार के रुप मे पहचाने जाने वाले शायर, गीतकार, कवि और पेशे से चिकित्सक डॉ0 नलिन की तीसरी पुस्तक “गीतांकुर” का विमोचन कोटा के जाने माने कवियों, साहित्यकारों और कोटा की अनेकों साहित्यिक संस्थाओं के सदस्यों के मध्य सम्पन्न हुआ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राजस्थान, कोटा द्वारा आयोजित जनावतरण समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने की। मुख्य अतिथि मयूखेश्वर महादेव मंदिर के संस्थापक प्रख्यात साहित्यकार शायर बशीर अहमद मयूख और श्री भगवती प्रसादजी गौतम थे। कार्यक्रम मंचासीन साहित्यकारों को पुष्पहार पहना कर स्वागत के साथ हुआ। पुस्तक के विमोचन के बाद पुस्तक परिचय श्रीमती (डॉ0) विमलेश श्रीवास्तव ने दिया। कार्यक्रम के मध्य में श्रीमती संगीता सक्सैना ने पुस्तक “गीतांकुर” के दो गीतों “पवन दुधारी उर पर मत धर” और “चंग बाजे संग साजे” को अपने स्वर दिये और कार्यक्रम को चार चांद लगा दिये। डॉ0 चतुर्वेदी के अध्यक्षीय भाषण और साहित्यकार अरविंद सोरल, अध्यक्ष साहित्य परिषद् के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम के अंत में मचासीन साहित्यकारों, श्रीमती संगीता सक्सैना, रम्मू भैया आदि को प्रशस्ति पत्र और उत्तरीय देकर डॉ0 नलिन ने सम्मानित किया। कार्यक्रम का समापन पधारे सभी साहित्यकारों और अतिथियों को “गीतांकुर” पुस्तक भेंट और अल्पाहार से हुआ। कार्यक्रम का संचालन रामेश्वर शर्मा “रम्मू भैया” ने किया। कार्यक्रम में पधारे साहित्यकारों में कोटा के जाने माने साहित्यकार श्री सर्वहारा, अखिलेश अंजुम, चांद शेरी, रघुनाथ मिश्र, ब्रजेंद्र कौशिक, सुश्री कृष्णा कुमारी कमसिन, गोपाल कृष्ण भट्ट “आकुल”, नरेंद्र चक्रवर्ती ”मोती”, आर सी शर्मा आरसी, वीरेंद्र विद्यार्थी, रामकरण सनेही आदि अनेकों कवि और कवियत्रियों ने डॉ0 नलिन को बधाई दी।

बीती जो बिसराओ, बीते, साल न ऐसा दस।
चमत्कार भले ना हों, बस, हो न तहस नहस।।
आयल डिपो, हादसा पुल का, आतंकी घटनायें।
कमरतोड़ महंगाई, कितना भ्रष्टाचार गिनायें।।
क्षति हुई सर्वोपरि दस जिसकी होगी ना भरपाई।
चमत्कार कुछ कम ही हुए, देने को सिर्फ़ बधाई।।
जयपुर, मुंबई ताज होटल की आतंकी घटनायें।
ऑयल डिपो जला, सैंसेक्स धराशायी मुंह बायें।।
स्वाइन फ्लू का क़हर, हुई चीनी भी महंगी ऐसी।
फ़ीके रहे त्योहार, दाल सब्जी़ भी हुई विदेशी।।
गिरी भाजपा उल्टे मुंह, कांग्रेस केंद्र में आई।
हुए धराशायी गढ़ जिनने दी थी राम दुहाई।।
नौ में दुर्घटनायें रेल की हुई बहुत जन हानि।
सुविधायें तो बढ़ीं, सुरक्षा घटी प्रभु ही जानी।।
अनिवासी भारतीयों ने नेताओं को भ्रष्ट बताया।
आस्ट्रेलिया में नस्लवाद का दुष्कृत्य सामने आया।।
बल्ला चला सचिन का वे महारथी बने क्रिकेट में।
बाकी खेल हुए चौपट सब राजनीति की ऐंठ में।।
वर्ष अनूठा होगा क्योंकि अंक है ‘दस’ का इसमें।
हो सकते हैं कई हादसे चमत्कार भी इसमें।।
पौ बारह ना हो दस नम्बरियों की ‘आकुल’ दस में।
चमत्कार जल थल नभ हानि ना मानव के बस में।।
-आकुल
