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| एक नई दस्तक देनी है |
*मुक्तक लोक एक कल्पवृक्ष*
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उक्त शीर्षक पढ़कर किसी को अटपटा लग
सकता है तो किसी का हृदय गद्गद ,किसी को आश्चर्य
तो किसी को आत्म-अनुभूति।इस आभासी कल्पवृक्ष की छाँव में अनेक साधकों ने माँ शारदे
से वरदान प्राप्त कर अपना जीवन धन्य किया है।देश से विदेशों तक बहुत से सिद्ध
कलमकारों ने कीर्ति पताका फहरायी है,उन्ही यशस्वी वाणीपुत्रों में मुक्तक लोक के सशक्त हस्ताक्षर एवं
स्तम्भ ** डाॅ गोपाल कृष्ण भट्ट "आकुल जी
" का नाम किसी परिचय का मुखापेक्षी
नहीं।आपकी सद्य प्रकाशित कृति "एक नई
दस्तक देनी है" (नवगीत संग्रह) पढ़ने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
पुस्तक के प्रथम सम्भाग में नवगीत विधा पर शोधकर्ताओं द्वारा उठाए गए सकारात्मक तेईस प्रश्न जिन्हें कृतिकार ने यक्ष-प्रश्न नाम दिया है,उनके उत्तर
विभिन्न ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों के विचारों का समावेश करते हुए नवगीत विधा को प्रतिष्ठित करने में अपने विचार तार्किक रूप से रखे हैं।उक्त प्रश्नोत्तर पाठक के हृदय में कौतूहल उत्पन्न करके कविता के प्रति नवीन चिंतन की ओर प्रेरित करते हैं।
चालीस नवगीतों के इस काव्य-संग्रह में कवि की प्रखर लेखनी का दिग्दर्शन होता है।वर्तमान सामाजिक रूढ़ियों, विसंगतियों ,प्रकृति से अनाधिकृत खिलवाड़,बारूदी जंग एवं उनके दुष्परिणामों को रचनाओं में कुशलतापूर्वक पिरोया गया है।
भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा ,तीज त्योहारों का भी समावेश गीतों में किया गया है।
विज्ञजनों के मतानुसार नवगीतों का मूलाधार भावों की यथार्थ निष्पक्ष अभिव्यक्ति है।"नवगीत छंदों में नहीं होते "इस मिथक को डाॅ आकुल ने अपने गीतों से मिथक साबित कर दिया।गेयता एवं युगबोध चेतना की दृष्टि से सभी गीत बेजोड़ हैं।
हिंदी साहित्य की इस अमूल्य धरोहर के लिए लेखनी के धनी डाॅ गोपाल कृष्ण भट्ट "आकुल" जी को अनेकानेक मंगलकामनाएँ!
पुस्तक के प्रथम सम्भाग में नवगीत विधा पर शोधकर्ताओं द्वारा उठाए गए सकारात्मक तेईस प्रश्न जिन्हें कृतिकार ने यक्ष-प्रश्न नाम दिया है,उनके उत्तर
विभिन्न ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों के विचारों का समावेश करते हुए नवगीत विधा को प्रतिष्ठित करने में अपने विचार तार्किक रूप से रखे हैं।उक्त प्रश्नोत्तर पाठक के हृदय में कौतूहल उत्पन्न करके कविता के प्रति नवीन चिंतन की ओर प्रेरित करते हैं।
चालीस नवगीतों के इस काव्य-संग्रह में कवि की प्रखर लेखनी का दिग्दर्शन होता है।वर्तमान सामाजिक रूढ़ियों, विसंगतियों ,प्रकृति से अनाधिकृत खिलवाड़,बारूदी जंग एवं उनके दुष्परिणामों को रचनाओं में कुशलतापूर्वक पिरोया गया है।
भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा ,तीज त्योहारों का भी समावेश गीतों में किया गया है।
विज्ञजनों के मतानुसार नवगीतों का मूलाधार भावों की यथार्थ निष्पक्ष अभिव्यक्ति है।"नवगीत छंदों में नहीं होते "इस मिथक को डाॅ आकुल ने अपने गीतों से मिथक साबित कर दिया।गेयता एवं युगबोध चेतना की दृष्टि से सभी गीत बेजोड़ हैं।
हिंदी साहित्य की इस अमूल्य धरोहर के लिए लेखनी के धनी डाॅ गोपाल कृष्ण भट्ट "आकुल" जी को अनेकानेक मंगलकामनाएँ!
राकेश मिश्र मुक्तक लोक

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