विधान- 23 मात्रीय मात्रिक छंद जिसमें 16, 7 पर यति। अंत गुरु-गुरु-लघु वाचिक
अपदांत
समांत- आर
पछताएँगे दे न सके यदि, हम संस्कार।
उड़ जाएँगे कर न सके यदि, हम परिहार।
अपसंस्कृति में डूबा खुश हो, लौटा कौन?
घबराएँगे खो कर उनको, घर-परिवार।
नवपीढ़ी संस्कार सही क्यों? क्या औचित्य?
पूछेगी ऐसे ही तुमसे, प्रश्न हजार।
नहीं धरातल जिनका तय है, मिटना चिह्न,
छलकाएँगे नैन स्वप्न जो, टूटे चार।
सम्बंन्धोंं को रखो बचा कर, समझो मित्र,
सहलाएँगे ‘आकुल’ ये ही, आखिरकार।।
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