विधान- उल्लाला सममात्रिक छंद है। किन, पद्य साहित्य में उल्लाला छन्द
के दो प्रकार मान्य हैं. एक, जिसके चारों चरण सममात्रिक होते
हैं. यानि उनके प्रति चरण दोहा छन्द के विन्यास की तरह 13 मात्राएँ होती हैं. दो, जिसके प्रत्येक पद की यति 15-13 पर होती है. यानि छन्द का यह
दूसरा प्रकार अर्द्धसम मात्रिक छन्द होता है. दूसरे प्रकार के उल्लाला छन्द में
तुकान्तता सम पदों में बनती है. हम पहले प्रकार पर ही ध्यान
केन्द्रित करेंगे. क्यों कि दूसरे प्रकार में विषम चरण के प्रारम्भ में एक गुरु या
दो लघु का शब्द जोड़ दिया जाता है ताकि विषम चरण पन्द्रह मात्राओं का हो जाय. बाकी
सारा विधान तेरह मात्रिक वाले चरणों की तरह ही होता है।
प्रस्तुत छंद पहले प्रकार का है, दोहे के विषम चरण से चारों चरणों का विन्यास होता है, अर्थात, सभी चरणों में 4-4-3-2 या 3-3-2-3-2
का विन्यास मान्य है. चरणान्त रगण (ऽ।ऽ या 212 या गुरु-लघु-गुरु) या नगण (।।। या 111 या लघु-लघु-लघु) से होना अति शुद्ध है. तुकान्तता
विषम-सम चरण में मान्य है तो सम-सम चरण की तुकान्तता भी मान्य है.
उल्लाला मुक्तक
1
खत्म
हुए कल कनागत, अब क्रम से त्योहार हैं।
शुरू
हुए नवरात्र से,
नवदुर्गा अब द्वार हैं।
असुरों का संहार हो,
स्थापित हो धर्म अब,
करते सब नवरात्र पर,
दुर्गा का मनुहार हैं।।
2
कई जगह नवरात्र हों,
कहीं रामलीला चलें।
दसवें दिन रावण जलें,
पाप धरा पर सब गलें ।
खुशियों की दीपावली,
सर्वधर्म समभाव का,
पर्व मने स्वागत करें,
गले मिलें संकट टलें।।
3
भारत ही इक देश है,
हर दिन इक त्योहार है।
सर्वधर्म समभाव से,
रहता हर परिवार है।
विघ्न असंतोषी कई,
होते ही हैं सब जगह
ऊँच नीच के भेद का,
नहीं आज व्यवहार है।
4
कण कण में भगवान हैं,
गंगा जमना तीर हैं।
अवतारों का देश है,
भक्त, संत, मुनि, पीर हैं।
भोग क्षणिक सुख लौटते,
छाँव तले आएँ सभी,
मातृभूमि
के ध्रुव कई, रणबाँके, रणवीर
हैं।
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