मूल-छंद
संकट मोचक हे हनुमान भजें तुमको कृतकृत्य करो प्रभु ।
राह चलें अब जीवन में सत की विचला दृढ़ चित्त करो प्रभु ।
दौर बड़ा गहरा दुख दे भयभीत हुए शठ ध्वस्त करो प्रभु।
‘आकुल’ का अब देख हुआ मन खिन्न कृपा कर स्वस्थ करो प्रभु।
पा न सके यदि जीवन में कुछ खास करें उसका दुख नाहक।
जो करते श्रम मिले उन्हें सँग साथ निसर्ग सदैव सहायक।
जीवन में मिलते किसको मन माफिक ही सुख-साधन 'आकुल',
शायद हो इसमें कुछ लाभ बनें अनुकूल सुयोग बिलाशक।
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