24 नवंबर 2012

देव जगे हैं

देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।
प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
घर-घर हो प्रकाश का अमित उजाला,
दें आशीष देव आयें घर, वंदनवार सजायें।।

फुलझड़ियाँ, अनार, पटाखों से जगमग हो।
दूर प्रदूषण हो, परिवार कभी ना, अलग थलग हो।
आज जरूरत है महती, ह‍म सब जागरूक हों,
महँगाई का दौर है, आवश्‍यकता लगभग हो।
सर्वोपरि है, प्रगति देश की, सब जुट जायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

जनसंख्‍या विस्‍फोट रुके, खुलें विकास की राहें।
ना मतभेद, न ही मनभेद हों, खुली हों सबकी बाहें।
नित्‍य मने उत्‍सव, त्‍योहार, दिवाली घर-घर,
वसुधैवकुटुम्‍बकम् के दर्शन हों, सभी सराहें।
नफ़रत की चौखट पर, सबको गले लगायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

2 टिप्‍पणियां:

travel ufo ने कहा…

बहुत बढिया

DrRaghunath Mishr 'Sahaj' ने कहा…

प्रेम,स्नेह,सौहर्द्र भाव से देप जलायेँ.
बहुत ही समसामयिक - सकारात्मक-युगबोध-जीवनदर्शन से सम्पन्न रचना के लिये बधाई.