19 नवंबर 2025

कुंडलिया छंद दिवस पर कुछ कुंडलिया

आज कुंडलिया छंद दिवस की शुभकामनाएँँ। आज कुछ छंद इस दिवस को समर्पित   
1
धीरज कम इंसान में, रहे उग्र दिन रैन 
कम रखते वाणी मधुर, खोते सब  का चैन ।।
खोते सब का चैन, पड़ें उलझन में खुद भी ।
लेते झगड़े मोल, और खोते सुधबुध भी ।।
कह आकुलकविराय, पंक में पलता नीरज ।
सबका मिले निदान, रखे मानव जो धीरज ।।
2
मात पिता गुरु राष्ट्र ही, जीवन का आधार ।
पथ प्रशस्त करते यही, है इनसे संसार ।।
है इनसे संसार, सफलता चरण चूमती ।
मिलता मान अपार, विजयश्री संग घूमती ।।
इन्हें मान आदर्श, कार्य जो करते हैं शुरु ।
डिगते नहीं कदापि, धन्य वे मात-पिता-गुरु ।।
3
कर्मनिष्ठ का कर्म से, होता है उत्थान ।
अकर्मण्य के भाग में, सोता अभ्युत्थान ।।
सोता अभ्युत्थान, नहीं मंजिल को छूते,  
भाग्य और दुर्भाग्य, कर्म के ही बलबूते ।।
होता है सम्मान, यथा घर में वरिष्‍ठ को ।
दिलवाता सम्मान, कर्म ही कर्मनिष्ठ का ।।
4
धर्म-कर्म बिन जीव का,  जीवन पतन समान ।
जैसे गुरु बिन ज्ञान का, मोल मिले कम मान ।।
मोल मिले कम मान, चोर चाहे दे सोना ।
चोरी का लो माल, चैन घर का है खोना ।।
आँचल बिन अब शीश, आँख भी आज शर्म बिन।
शायद जीवन मूल्‍य, खो गए धर्म-कर्म बिन ।। 

18 नवंबर 2025

जीवन एकांकी भी तो है

जीवन खुश रहना ही तो है।
जीवन दुख सहना भी तो है।।

महलों के क्‍या ख्‍वाब देखना।
अपनों से क्‍या लाभ देखना।
कम से कम इतना ही हो  बस,
जीवन की मुस्‍कान देखना।

जीवन मन भरना ही तो है।
जीवन हठ करना भी तो है।।

चंचल मन ये रुका नहीं तो
हठधर्मी यदि झुका नहीं तो
होंगे दंगे भी फसाद भी,
कर गुजरेगा चुका नहीं तो

जीवन कुछ पाना ही तो है।
जीवन कुछ खोना भी तो है।

नभ में तो पतंग भी कटतीं
मेघावलिया तक भी फटतीं
तारे टूटें अंतरिक्ष में,
मान्‍यताऍ बढ़तीं कम घटती

जीवन सदाचार ही तो है।
जीवन अनाचार भी तो है।।

चरम पहुँचना ध्‍येय नहीं हो
द्वेष, क्‍लेश, स्‍तेय नहीं हो
परिभाषा सुख की आवश्‍यक,
दुख कैसा भी हेय नहीं हो।

जीवन एकाकी ही तो है।
जीवन एकांकी भी तो है।। 

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17 नवंबर 2025

संकट मोचक है हनुमान

 #किरीट_सवैया (भगणx8)

मूल-छंद
संकट मोचक हे हनुमान भजें तुमको कृतकृत्य करो प्रभु ।
राह चलें अब जीवन में सत की विचला दृढ़ चित्त करो प्रभु ।
दौर बड़ा गहरा दुख दे भयभीत हुए शठ ध्वस्त करो प्रभु।
‘आकुल’ का अब देख हुआ मन खिन्न कृपा कर स्वस्थ करो प्रभु।
पा न सके यदि जीवन में कुछ खास करें उसका दुख नाहक।
जो करते श्रम मिले उन्हें सँग साथ निसर्ग सदैव सहायक।
जीवन में मिलते किसको मन माफिक ही सुख-साधन 'आकुल',
शायद हो इसमें कुछ लाभ बनें अनुकूल सुयोग बिलाशक।

16 नवंबर 2025

जीना न सहल है

  #छंद_रोला

विधान- अर्द्ध सम मात्रिक 24 मात्रीय छंद जिसमें 11,13 पर यति। अंत 2 गुरु वाचिक। लगभग दोहे का विपरीत, विषम चरण दोहे का समचरण इसलिए विषम चरणांत 21 स्वत: बनता है, रोले का सम चरण त्रिकल से और चरणांत दो गुरु वाचिक। त्रिकल के बाद त्रिकल अनिवार्य ।
पदांत- है
समांत- अल

सीख सके तो सीख, कहा है समय अटल है।
अकर्मण्य भयभीत, रहा जीना न सहल है।

नहीं कहीं भी तोड़, सका कोई पैमाना,
सदा करे जो कर्म, सुखी है और सफल है।

जो समझे सत्कर्म, सदा सर्वोपरि जाने,
करते हैं जो कर्म, उसी का भाग्य प्रबल है।

बिना प्रदूषण हटे, कल्पनातीत भोग-सुख,
इसका नहीं विकल्प, राह भी नहीं सरल है।

रह निसर्ग से विमुख, झेलना विपदाएँ नित,
सँभल सके तो ठीक, न सँभले तो हलचल है।

सहल- आसान 

14 नवंबर 2025

यह जीवन है

अपदांत
समांत- आएँँ

#जीवन में अनहोनियाँ, अनचाहे ही आएँ ।
कभी कभी बीमारियाँ, भारी संकट लाएँ।

किया धरा इनसान का, दोष भाग्य को देता,
सत्य जान कर भी कभी, मन को हम भटकाएँ

गेहूँ के सँग घुन पिसे, दीमक घर को चाटे,
कहीं न हो बारिश कहीं, बादल भी फट जाएँ।

क्या ले कर आए सभी, क्या ले कर है जाना,
अंत समय में वस्त्र तक, तन से सब हटवाएँ।

समझो सारी सीख हैं, जीवन में हितकारी,
जैसे बच्चे को सभी, बारहखड़ी रटाएँ।

तप कर हो सोना खरा, तप करते संन्यासी,
तप जीवन का ध्येय हो, मन का मैल हटाएँ।

‘आकुल’ का यह मानना, जीवन वह है भारी,
सज्जनता जिसमें नहीं, अपनों से कट जाएँ ।।

#आकुल, मुक्तक-लोक

13 नवंबर 2025

उल्‍लाला छंद आधारित मुक्‍तक

विधान- उल्‍लाला सममात्रिक छंद है। किन, पद्य साहित्य में उल्लाला छन्द के दो प्रकार मान्य हैं. एक, जिसके चारों चरण सममात्रिक होते हैं. यानि उनके प्रति चरण दोहा छन्द के विन्यास की तरह 13 मात्राएँ होती हैं. दो, जिसके प्रत्येक पद की यति 15-13 पर होती है. यानि छन्द का यह दूसरा प्रकार अर्द्धसम मात्रिक छन्द होता है. दूसरे प्रकार के उल्लाला छन्द में तुकान्तता सम पदों में बनती है. हम पहले प्रकार पर ही ध्यान केन्द्रित करेंगे. क्यों कि दूसरे प्रकार में विषम चरण के प्रारम्भ में एक गुरु या दो लघु का शब्द जोड़ दिया जाता है ताकि विषम चरण पन्द्रह मात्राओं का हो जाय. बाकी सारा विधान तेरह मात्रिक वाले चरणों की तरह ही होता है।
प्रस्‍तुत छंद पहले प्रकार का है, दोहे के विषम चरण से चारों चरणों का विन्यास होता है,  अर्थात, सभी चरणों में 4-4-3-2 या 3-3-2-3-2 का विन्यास मान्य है. चरणान्त रगण (ऽ।ऽ या 212 या गुरु-लघु-गुरु) या नगण (।।। या 111 या लघु-लघु-लघु)  से होना अति शुद्ध है. तुकान्तता विषम-सम चरण में मान्य है तो सम-सम चरण की तुकान्तता भी मान्य है. 

उल्‍लाला मुक्‍तक 
1
खत्‍म हुए कल कनागत, अब क्रम से त्‍योहार हैं।
शुरू हुए नवरात्र से, नवदुर्गा अब द्वार हैं।
असुरों का संहार हो, स्‍थापित हो धर्म अब,
करते सब नवरात्र पर, दुर्गा का मनुहार हैं।।
2
कई जगह नवरात्र हों, कहीं रामलीला चलें।
दसवें दिन रावण जलें, पाप धरा पर सब गलें ।
खुशियों की दीपावली, सर्वधर्म समभाव का,
पर्व मने स्‍वागत करें, गले मिलें संकट टलें।।
3
भारत ही इक देश है, हर दिन इक त्‍योहार है।
सर्वधर्म समभाव से, रहता हर परिवार है।
विघ्न असंतोषी कई, होते ही हैं सब जगह
ऊँच नीच के भेद का, नहीं आज व्‍यवहार है।
4
कण कण में भगवान हैं, गंगा जमना तीर हैं।
अवतारों का देश है, भक्‍त, संत, मुनि, पीर हैं।
भोग क्षणिक सुख लौटते, छाँव तले आएँ सभी,
मातृभूमि के ध्रुव कई, रणबाँके, रणवीर हैं। 

12 नवंबर 2025

दिल्‍ली की आतंकवादी घटना 10.11.2025

1
#सिंदूर_मिशन भी हुआ नहीं है खत्म अभी।
इस बार नहीं तो मौका मिलना नहीं कभी ।
कब तक अपनों को हम खोते रोज रहेंगे,
2
धूँआ होता वहाँ आग भी, मिलती ही है।
फेक न्यूज कमतर मानी यह, गलती ही है।
सिंदूर मिशन ढीला पड़ते ही, हुआ आक्रमण,
..
#आकुल, मुक्तक-लोक